चक्र हमारे सूक्ष्म शरीर में प्राण (ऊर्जा) का एक बिंदु है जो हमारे शरीर के भौतिक समकक्षों जैसे शिराओं, धमनियों और तंत्रिकाओं में स्थित होता है। प्राण या जीवन शक्ति जब भी अवरुद्ध हो जाती है तब उसको मुक्त करने का लाभदायक तरीका है योग। योग नकारात्मक ऊर्जा को मुक्त करता है और हमारे तंत्र में मुद्राओं और श्वास के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रण देता है।

सात चक्रों में प्रत्येक चक्र की अपनी चेतना है और यह भावनात्मक तंदुरुस्ती से संबंधित है। मूलाधार या रुट चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित है और यह बुनियादी मानव वृत्ति और अस्तित्व से संबंधित है। स्वाधिष्ठान चक्र, रूट चक्र से ऊपर सैक्रम पर स्थित है और प्रजनन चक्र के सदृश्य है। इसके ऊपर मणिपुर चक्र, उदर क्षेत्र में स्थित है और आत्मसम्मान, शक्ति, भय आदि से संबंधित है और शारीरिक रूप से यह पाचन से संबंधित है। इसके ऊपर अनाहत चक्र, हृदय से थोड़ा ऊपर छाती में स्थित है और प्यार, आंतरिक शांति व भक्ति से संबंधित है। इसके बाद विशुद्धी चक्र, गले में स्थित है और संचार, आत्म-अभिव्यक्ति आदि से संबंधित है। इसके ऊपर आज्ञा चक्र है, जो दोनों भौंहों के बीच स्थित है और अंतर्ज्ञान, कल्पना और स्थितियों से निपटने की क्षमता का प्रत्युतर देता है। अंत में, सहस्रार है, जो सिर के शीर्ष पर है और आंतरिक व बाहरी सौंदर्य, आध्यात्मिकता के साथ संबंध से रखता है।

जब योग और मुद्रा का अभ्यास किया जाता है, तो चक्र संतुलित हो जाते हैं और हमारी प्रणाली को शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एक स्थिर, संतुलित तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। इन में कुछ योगासन शामिल हैं:

1. ताड़ासन (पर्वत आसन)

पर्वत आसन धरती से संबंध को उन्नत करता है, शरीर से जोड़ता है और वर्तमान क्षण में व्यक्ति को स्थापित करता है।

2. वीरभद्रासन (योद्धा मुद्रा)

veerbhadrasana

यह एक सशक्त आसन है जो पृथ्वी और शरीर के बीच दृढ़ संबंध बनाता है। यह आसन प्राण की पूरे शरीर में गतिशीलता प्रदान करता है और प्रथम चक्र को सशक्त करता है। यह शारीरिक रूप से पैरों को मजबूत करता है, कूल्हों को खोलता है और घुटने और पीठ के निचले हिस्से को ताकत प्रदान करने में मदद कर सकता है।

3. सेतुबंधासन

Setu Bandhasana - inline

यह एक ऊर्जस्वी मूल चक्र योग मुद्रा है जो पैरों को धरती में दृढ़ता से स्थापित करती है और रीढ़ की हड्डी को अत्यधिक मात्रा में मूलाधार चक्र की ऊर्जा को मुक्त करने में प्रवृत्त करती है। सेतुमुद्रा गले के चक्र को भी उत्तेजित करती है, हृदय और सोलर प्लेक्सस चक्रों को खोलती है, और त्रिक चक्र को संतुलित करती है।

इन के साथ कुछ मुद्राएं भी प्राण को मुक्त करने और चक्रों को खोलने में सहायता करती हैं। उनमें शामिल हैं:

1. मूलाधार

Muladhara chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और ध्यान को अपने पेरिनियम यानि गुदा और जननेन्द्रियों के बीच के स्थान पर केंद्रित करें।
  2. अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएँ। हथेलियों को अपने घुटनों पर आकाश की ओर दिखाते हुए रखें और हाथों को विश्राम कराएँ।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें। गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

2. स्वाधिष्ठान

Swadhisthana chakra
  1. अपनी गोद में अपने दाहिने हाथ को बायें हाथ पर रख कर विश्राम कराएँ, हथेलियाँ आकाश की ओर रहें, आराम से बैठ जाएँ, अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपनी नाभि के नीचे एक इंच के क्षेत्र में से लेकर पहली लुम्बर वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
  2. अंगूठे हल्के से एक दूसरे से स्पर्श करें।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

3. मणिपुर

Manipura chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें व अपने ध्यान को अपनी नाभी से लेकर सोलर प्लेक्सस और आठवीं थोरेसिक वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
  2. अपनी ऊँगलियों को सीधा रखें, सामने की ओर देखतीं हुईं एक दूसरे को शीर्ष पर छूती हुई हों। अपने अंगूठों के साथ ‘वी’ की आकृति बनाएँ। दाहिना अँगूठा बायें अँगूठे को क्रॉस करते हुए रहे।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

4. अनाहत

Anahata chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और  ध्यान को अपने हृदय क्षेत्र से लेकर पहली थोरेसिक वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
  2. तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएँ। बाएं हाथ की हथेली को अपने बाएं घुटने पर विश्राम कराएँ अपने दाहिने हाथ को अपने स्तनों के बीच तक उठाएँ, हथेली हल्की सी आपके हृदय की तरफ झुकी रहे।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

5. विशुद्धि

Vishuddhi chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और ध्यान को गले के आधार क्षेत्र पर से लेकर तीसरी सरवाइकल वरटिब्रा तक केंद्रित करें।
  2. दोनों अंगूठों को छूते हुए एक वृत बनाएँ और ऊंगलियों को आपस में क्रॉस करें और ढीले कप की आकृति लिये हुए हो। हाथों को अपने गले, सोलर प्लेक्सस के सामने तक उठाएँ, या अपनी गोद में आराम करने दें।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

6. आज्ञा

Ajana chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और ध्यान को तीसरी आंख के क्षेत्र पर केंद्रित करें, भौहों के बीच के बिंदु से थोड़ा ऊपर से शुरु होकर पहली सरवाइकल कशेरुका तक, खोपड़ी के आंतरिक भाग को शामिल करते हुए।
  2. अपने दोनों अंगूठों तथा दोनों तर्जनि ऊँगलियों के सिरों को आपस में स्पर्श कराते हुए हृदय का आकार बनाएँ, अनामिका व कनिष्ठा आपस में ऊँगलियों के दूसरे पोरों पर स्पर्श करें। मध्यमा ऊँगलियों से ताज बनाएँ। हाथों को उठाऐं तीसरे नेत्र, सोलर प्लेक्सस के सामने रखें, या गोद में विश्राम करने दें।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।

7. सहस्रार

Sahasrara chakra
  1. आराम से बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और  सिर के शीर्ष पर स्थित मुकुट के क्षेत्र पर और  खोपड़ी से ऊपर तीन इंच तक ध्यान केंद्रित करें।
  2. ऊँगलियों को आपस में अंदर की ओर क्रॉस करते हुए और बायें अंगूठे को दायें के नीचे रखें, इस तरह से हाथों को जकड़ लें। दोनों अनामिका ऊँगलियों को उठाएँ और मुकुट बनाएँ। सिर के ऊपर से दोनों हाथों को उठाएँ, सोलर प्लेक्सस के सामने, या गोद में विश्राम कराएँ।
  3. गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  4. 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएँ।​

प्रतिदिन योगाभ्यास के साथ-साथ, मुद्रा, ध्यान और श्वास के व्यायाम से इन चक्रों को खोलने में मदद मिलती है, जिसका हमारे शरीर, मन और आत्मा पर सकारात्मक और तीव्र प्रभाव हो सकता है।

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