हम सभी जाने अनजाने में कुछ ऐसी धारणाएँ पाल लेते हैं जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बना या बिगाड़ सकती हैं। सकारात्मक धारणाएँ हमें जीवन, लोगों तथा समस्याओं को स्वस्थ दृष्टिकोण से देखने में मदद करती हैं। बुरी धारणाएँ हमारी आशाओं और आत्म-सम्मान को क्षीण कर देती हैं तथा कई नकारात्मक भावनाओं को पोषित करती हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए यहाँ कुछ सामान्य धारणाएँ हैं जिन्हें तोड़ना आवश्यक है।

मेरा आत्म-मूल्य लोगों की मेरे बारे में राय पर निर्भर करता है

लोगों की राय बदलती रहती है। अपने बारे में आपकी राय भी बदलती है। अपने आत्म-मूल्य को उन मतों से जोड़ना इसे बदलते मौसम से जोड़ने जैसा है। आप अपनी ही धारणाओं से अपने आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचा रहे हैं। आपको अपनी असफलताओं और सफलताओं से अपना आत्म-मूल्य निर्धारित करना चाहिए। एक स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करने और अपनी शक्ति के आंतरिक स्रोत तक पहुँचाने के लिए ध्यान करें।

मुझे सदैव खुश रहना है

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं, “‘हमेशा’ (की रट) को छोड़ दो, (तभी) प्रसन्नता संभव है।” सच तो यह है कि सुख और दुःख चंचल भावनाएँ हैं। हम उनसे अवास्तविक अपेक्षाएं रखते हैं, जो हमें और अधिक दुःख की ओर ले जाती हैं। हम स्वयं को अपनी खुशियों से जुड़ा हुआ पाते हैं और अपना आराम के क्षेत्र छोड़ने से इनकार कर देते हैं। जबकि, आराम के बाहर का स्थान ही है जहाँ वास्तविक विकास होता है। 

मैं जो पाना चाहता हूँ, वह पाना ही सफलता है

हमारी इच्छाएँ हमेशा पूरी नहीं होती। मुझे भरोसा है, आज आप खुश हैं कि आपकी कुछ इच्छाएँ पूरी नहीं हुईं। सच्ची सफलता है ऐसा साहस होना जो विपरीत परिस्थितियों में भी कम नहीं होता। जिन दिनों आपकी मुस्कान स्थायी हो, उन्हें सफल दिन माना जाना चाहिए। जिस दिन आप आत्मविश्वासी हैं, उस दिन आप सफल हैं। जीवन में जो उपलब्धि खुशी रहित हो वह सफलता नहीं हो सकती।

मुझे परिपूर्ण होना चाहिए

परिपूर्ण बनने की चाह हमें अपूर्ण बना देती है। पूर्णतावादी लोग नाखुश हैं। वे दूसरों की खामियों को संभाल नहीं पाते। परिपूर्ण व्यक्ति अपूर्ण होना बर्दाश्त नहीं कर पाता। यह उनके गले की फाँस बन जाता है। उन्हें गुस्सा आता रहता है। गुस्सा एक ऐसी सजा है जो वे दूसरों की गलतियों के लिए स्वयं को देते हैं। गुस्सा उनके शर्करा व तनाव को और उनके रक्तचाप को बढ़ाता है। नाराज होने से चीजें नहीं बदलतीं। हमें एक स्थिति को व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहिए और उससे कुशलता से निपटना चाहिए।

सब कुछ योजना के अनुसार होना चाहिए

लक्ष्य रखना और उनके लिए काम करना अच्छा है। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जीवन अप्रत्याशित है। योजनाओं में लचीलापन आपको अपनी भावनाओं को स्थिर रखने और अपने प्रयासों में और अधिक लचीला बनने में मदद कर सकता है। किसी योजना के लिए अपने जीवन के अन्य मूल्यवान पहलुओं से समझौता करने का कोई मतलब नहीं है। आपके पास हमेशा एक क, ख, ग आदि योजना हो सकती हैं। बड़े दृष्टिकोण से देखें। जान लें कि हर चीज का अपना समय होता है। अपने प्रयास करें और परिणामों के प्रति धैर्य रखें।

इच्छाओं की पूर्ति ही खुशी का मार्ग है

सच यह है कि हर इच्छा हमें हताशा की ओर ले जाती है। जब हम एक इच्छा पूरी कर लेते हैं फिर वह हमारे मन के लिए आनंददायक नहीं रहती। फिर हम अगली इच्छा पूरी करने की तैयारी में लग जाते हैं। जब कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो हम निराश होते हैं। तो,‌ खुशी की असली कुंजी अपनी इच्छाओं या भौतिक लाभों में न फंसना है।

अपना जीवन किसी बड़े लक्ष्य या अपने आसपास के लोगों की सेवा के लिए समर्पित करें। तब आप पाएँगे कि आपके जीवन में केवल खुशियाँ ही बह रही हैं। याद रखें कि एक सर्वोच्च शक्ति आपका ध्यान रख रही है। जब आपके पास ऐसा विश्वास है, तो आप खुश रह सकते हैं।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

असहमति यह संकेत देती है कि कुछ गलत है

जब हम किसी से असहमत होते हैं तो अक्सर हम उसे बुरा या गलत ठहराते हैं। पर सच्चाई यह है कि एक ही स्थिति पर हमारे अलग-अलग दृष्टिकोण होते हैं। गुरुदेव कहते हैं, “अलग-अलग धारणाएँ होना स्वाभाविक है और होनी भी चाहिए। जब आप भलाई और अपनेपन की अंतर्निहित धारा को पहचानते हैं तो विभिन्न दृष्टिकोण जीवन को और अधिक समृद्ध बनाते हैं।” तर्कों का स्वागत करना चाहिए। ऐसा करने से आप एक विनोदपूर्ण स्थिति में पहुँच जाते हैं। तर्क-वितर्क का अंत हास्य में होना चाहिए, दुःख और निराशा में नहीं। बुद्धिमान लोग जानते हैं कि कैसे तर्क-वितर्क किया जाता है और कैसे अंततः इससे बाहर निकला जाता है।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के व्याख्यानों पर आधारित

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