मेरे बच्चे का लालन पालन करते हुए, मैं हमेशा याद करती हूं कि कभी मैं भी बच्ची थी। मेरा लालन-पालन करते हुए मेरे माता-पिता की व्यापक समझ थी, जो सफल थी। मेरे दादा-दादी के व्यावहारिक लालन-पालन के लिए मैं कृतज्ञ हूं, जिससे मेरे माता-पिता अच्छे इंसान बने। तो आपने देखा, जीवन मूल्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं? और इसी प्रकार ही परवरिश के मूलभूत सुझाव भी।

अच्छे लालन-पालन के मौलिक नियम क्या हैं?

अच्छे लालन पालन में बच्चों की आयु एवं उनके विकास की अवस्था महत्वपूर्ण है। परवरिश दो रास्तों वाली यात्रा है: बच्चों को सिखाना एवं उनसे सीखना। गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर की शिक्षा पर आधारित ये लालन-पालन के 12 नियम अभिभावक – बच्चों के संबंध को शिला की तरह ठोस बुनियाद प्रदान करेगा। यह आपके बच्चे के प्रेम, विश्वास, खोज और सीखने के सामर्थ्य का उत्थान करेगा।  

बच्‍चों के साथ खेलें

अपने बच्चों के साथ खेलें। नाचे-गाएं, उनके साथ उत्सव मनाएं। पूरे वक्त शिक्षक न बने रहें। अपने बच्चों से सीखें। सम्मान करें। बच्‍चों के साथ गंभीर न बने रहें। एक बार गुरूदेव ने कहा: ‘’मेरे पिताजी जब काम से लौटते थे, हमें हंसाते, गुदगुदाते और हमारा पीछा करते थे।”

धैर्य रखें

धैर्य, अन्‍य सभी पालन-पोषण के नियमों की नींव है। सामान्य सी मामूली बातों में नहीं उलझें। परवरिश बहुत सारे धैर्य की अपेक्षा रखता है। अपने बच्चों  के साथ व्यवहार के लिए आपको धीरज और दृढ़ता की आवश्यकता होती है। उनको वांछित पथ पर मार्गदर्शन देते हुए उनकी इच्छाओं के साथ सामंजस्य बैठायें।  

मानवीय स्पर्श प्रदान करें

अपने बच्चों के लिए समय निकालें। आधे से एक घंटे का समय बिताना काफी है। साथ ही, उनके साथ 5-6 घंटे बैठकर उनका दम भी न घोंटे। बच्चे आपसे कहानी सुनना चाहते हैं। उनमें नीति मूल्य का सृजन करने के लिए उन्हें रोचक कहानियां सुनाएं। अगर आप उन्हें कहानियां सुनाएंगे, तो वे टी.वी. और मोबाइल से चिपके नहीं रहेंगे। मानवीय स्पर्श की आवश्यकता है। अपने बच्चों को स्‍क्रीन के सामने अधिक नहीं बैठने दें। स्क्रीन के सामने बैठकर उनकी सहभागिता समाप्त हो जाती है। 

स्वाभाविक विश्वास को विकसित होने दें

स्‍वभाव से बच्चों में विश्वास करने की प्रवृत्ति होती है। जैसे जैसे वे बड़े होते हैं, कहीं न कहीं उनका विश्वास डगमगाने लगता है। यह देखें कि वे स्वयं पर, लोगों की अच्छाईयों में और दिव्य शक्ति पर विश्वास रखते हैं कि नहीं। विश्वास बच्‍चे को प्रतिभावान बनाता है। अगर उनका विश्वास कमजोर पड़ जाता है, तो बच्चों की प्रतिभा और संपर्क क्षमता सिकुड़ने लगती है। आज बहुत सारे उद्यमियों के असफल होने में, विश्वास का अभाव ही एक कारण है।

नैतिक मूल्यों को चित्‍त में बैठा देना

आज के युवाओं में अति सक्रियता और आक्रामकता है, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक मूल्य, नीति शास्‍त्र, करुणा, मित्रत्व, प्रेम के नैतिक सिद्धांतों को शामिल करें। हमें यह समझना होगा कि इन गुणों के पोषण में ही शांति और समन्वय का पथ है। 

एक संतुलित व्यक्तित्व को पोषित करें

अपने बच्चों पर ध्यान रखें कि वे विभिन्न आयु वर्ग – बड़ों से, युवाओं से और अपने समकक्ष से किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। यह निरीक्षण आपको समझने में मदद करेगा कि कहीं वे किसी जटिल परिस्थिति को तो विकसित नहीं कर रहे हैं। केन्द्रित, प्रतिभावान और लचकदार व्यक्तित्व के विकास के लिए अपने बच्चों की मदद करें। उनको सभी आयु वर्ग के लोगों के प्रति जिम्मेदारी देकर सभी आयु वर्ग से संवाद के अवसर ढूंढें।

सकारात्मकता और यर्थाथता में संतुलन बनाएं

जब बच्चा शिकायतों के साथ आता है, तो क्या आप उनकी नकारात्मकता को उत्साहित करते हैं या उसको सकारात्मकता में ढाल देते हैं। जब आपका बच्चा किसी ऐसे की प्रशंसा करता है, जो इतनी प्रशंसा के लायक नहीं है, तो क्या आप उनकी कमियों की तरफ ध्यान दिलाते हैं या उनको उनकी गलत धारणाओं में घूमने देते हैं। दोनों ही प्रकरणों में आपको उन्हें मध्य मार्ग में संतुलित करना होगा।

मित्रत्व को प्रोत्साहित करें

अपने बेटे (संतान) को 5 वर्ष तक प्यार-दुलार करें, अगले 10 वर्ष तक डांट से, झिड़की देकर उन्हें नियंत्रण में रखें: लेकिन सोलहवें साल के शुरू होते ही उनसे मित्रवत व्यवहार करें।

उन्हें खुश या नाखुश करने की कोशिश न करें। उसके दोस्त बने, न कि सत्तावादी व्यक्ति। उन्हें अपने घर की तरह अनुभव कराएं, आध्यात्मिक रूप से प्रेरित करें और धीरज रखें।

स्पष्ट सीमा निर्धारित करें

अपने बच्चे के विकास के लिए उसका पोषण और सहयोग उतना ही जरूरी है, जितना कि उनके लिए नियम निर्धारित करना और उनके व्यवहार से अपेक्षाएं करना। गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर दृढ़ रहने की आवश्यकता पर जोर देते हैं, किन्तु प्रेम के द्वारा बच्चों को इन सीमाओं के लिए बाध्‍य करें और उनके अच्‍छे व्‍यवहार के प्रोत्साहन हेतु सकारात्मक सुदृढ़ीकरण का प्रयोग करें।

अभिरुचियों का संतुलित विकास 

विज्ञान और कला को जोड़ते हुए आपको बच्चे के दायें और बायें मस्तिष्क की गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित करना होगा। देवी सरस्वती के प्रतीकों में दायें और बायें मस्तिष्क में सामंजस्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि बाएं मस्तिष्क के लिए किताब, दाएं मस्तिष्क के लिए वाद्य यंत्र और ध्यान की स्थिति है। यह जरूरी है कि बच्‍चे संगीत सीखें, योग और ध्यान का अभ्यास करें और साथ ही साथ वैज्ञानिक मानसिकता का विकास करें।  

अगर किसी एक की तरफ उनका झुकाव है, तो दूसरे की खोज के लिए उन्हें प्रेरित करें। जैसे कि आपका बच्‍चा विज्ञान पसंद करता है, तो उसे घर पर सृजनात्मक प्रोजेक्‍ट्स देकर और म्यूजियम की सैर द्वारा, कला की दुनिया से भी परिचय करवाएं।

समाज सेवा के लिए प्रोत्साहित करें

आपके बच्चे को किसी सेवा कार्य को करने को कहे। किसी रविवार के दिन, अपने बच्चे को कुछ चॉकलेट देकर कहें कि वे इसे निर्धन बच्चों में बांटे। उन्हें वर्ष में एक या दो बार समाज सेवा में व्यस्त रहने के लिए प्रोत्साहित करें। उनका यह अनुभव उनके व्यक्तित्व को अनजाने में ही निखारेगा।

संवेदनशील बनें – जो आप कहते हैं, वह करें

अपने बच्चों के लिए उदाहरण बनें। बच्‍चों को ‘झूठ नहीं बोलना’ कहकर, उन्हें निर्देश देना कि मेहमान के सामने कहे कि वे घर पर नहीं हैं, उन्हें ईमानदारी नहीं सिखाने वाला। ये उन्हें संशय में डालेगा और यहां तक कि उन्हें चालाक व्यवहार की ओर ले जाएगा।

निष्कर्ष

इन सकारात्मक परवरिश के नियमों के अतिरिक्त गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर के वीडियो ‘’फरिश्तों की परवरिश’’ में लालन-पालन के टिप्‍स देकर मूल्यवान ज्ञान पर पर प्रकाश डालेगा जो कि आपको एक अच्छे अभिभावक बनने में मदद करेगा। साथ ही इस वीडियो में गुरुदेव ने आपके और आपके बच्चे में एक सकारात्मक अभिवृत्ति को बनाए रखने के महत्व, ध्यान का अभ्यास और कृतज्ञता भाव की उपज के लिए भी  चर्चा की है। स्वस्थ बच्चों को बड़ा करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पाने के लिए गुरुदेव द्वारा ‘’नो योर चाइल्ड: बच्चों के पालन की कला’’ किताब को भी आप पढ़े।

अभिभावक और बच्चों की अपनी एक अलग ही क्षमता और कमजोरियां होती हैं। इसलिए अभिभावक- बच्चों के संबंध का कोई मानदंड नियम नहीं है। एक ही नियम अलग अलग परिणाम दे सकता है। लेकिन इन नियमों के पीछे मार्गदर्शन शक्ति या सिद्वांत एक से ही होंगे।

आर्ट ऑफ लिविंग के ‘’नो योर टीन वर्कशॉप’’ में भाग लें और अपने किशोर बच्चों को बेहतर तरीके से जानने के मूल्यवान ज्ञान का लाभ उठाएं, जैसा कि अभी तक बहुत सारे अभिभावकों ने किया है।

’नो योर टीन वर्कशॉप’’ सचमुच मेरे लिए आंखें खोलने वाला था। आपने कोई भी प्रश्न को अनुत्तरित नहीं छोड़ा। मैंने अपने पति का भी पंजीकरण करा लिया है। असल में अगर दोनों अभिभावकों ने इसे एक साथ किया तो वे साथ मिलकर समस्या को हल कर सकते हैं। 

– आकांक्षा

प्रश्नोत्तर

संत कबीरदास 
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।
अर्थात्:
मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा!
इसी प्रकार, बच्चों को भी जल्दी बड़े होने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते। वे अपनी गति से बड़े होंगे। इसलिए, धैर्य लालन-पालन में प्रमुख भूमिका निभाता है। 
माता-पिता की 10 जिम्मेदारियां है –
1.     अपने बच्चों को सुविधाजनक और सम्मानित जीवन के लिए आवश्यक मूल आवश्यकताएं प्रदान करना।
2.     अपने बच्चे की मांगों के कारणों का मित्रवत तरीके से आकलन करना।
3.     अपने बच्चों में आत्‍म- सम्‍मान, कल्पना शक्ति और अनोखे गुणों को प्रोत्साहित करना।
4.     धैर्य रखें। छोटी छोटी बातों में उलझे नहीं।
5.     उन्हें अनुशासन और मानवीय मूल्य सिखाएं।
6.     अपने बच्चों के साथ अच्छा समय व्यतीत करें।
7.     अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान करें कि वे एक अच्छे इंसान बनें।
8.     कहानियों द्वारा या ऐसे अवसर उत्पन्न करके उन्हें विवेकवान निर्णयकर्ता बनाएं।
9.     समस्या को सुलझाने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए  उन्हें अपने दोस्‍तों और छोटे बहन-भाईयों से लड़ने दें।
सकारात्मक अनुशासन को लगातार आपसी सम्मान के साथ लागू करना सबसे प्रभावी है।  
1.     अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांग लें। 
2.     अपने बच्चे को एक इंसान के रूप में देखें, न कि वैयक्तिक संपत्ति की तरह।
3.     अपने बच्चों के साथ तुच्‍छ, चालाक और कठोर न बनें।
4.     जब वे बड़े हो रहे हों, तो छोटी छोटी बातों के लिए उन्हें आप पर निर्भर न रहने दें।
5.     बीते हुए दुर्व्यवहार की बजाय भविष्य के उचित व्यवहार पर केंद्रित रहें।
बच्चे के 12 अधिकार हैं –
1.     6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार।
2.     14 वर्ष तक संकट जनक रोजगार से सुरक्षा का अधिकार।
3.     प्रताड़ना और आर्थिक जरूरत से मजबूर जबरन किसी ऐसे व्यवसाय में उतारना,  जो उनकी आयु या शक्ति के अनुसार अनुपयुक्त हो, से सुरक्षा का अधिकार। 
4.     स्वस्थ रूप से विकसित होने के लिए स्वतंत्रता की स्थिति, सम्मान के  समान अवसर और सुविधाएं एवं शोषण के खिलाफ निश्चिन्त बाल्यावस्था, युवावस्था और नैतिक और सांसारिक परित्‍याग से निश्चित सुरक्षा का अधिकार।
5.      6 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक शुरुआती बाल्‍यावस्‍था देखभाल और शिक्षा का अधिकार।
6.     समानता का अधिकार।
7.     भेदभाव के खिलाफ अधिकार
8.     जातीय स्वाधीनता और देय विधि प्रक्रिया का अधिकार।
9.     अवैध व्यवसाय एवं अनुबंध मजदूरी के लिए जबरदस्ती से सुरक्षा का अधिकार।
10.   अल्पसंख्यकों के कल्‍याण की सुरक्षा का अधिकार।
11.   दुर्बल श्रेणी के लोगों को सामाजिक अन्‍याय और हर प्रकार के शोषण से सुरक्षा का अधिकार।
12.   पोषण और जीविका के मानदंड एवं आमजन के स्वास्थ्य की बेहतरी का अधिकार।
एक अच्छी माँ निस्‍स्‍वार्थ, स्‍नेही होती है, जो अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को अपने बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं पर न्यौछावर कर देती है। एक मां उसके बच्चे को एक अच्छा इंसान बनने के लिए उसे बोध, कौशल और गुणों से सुसज्जित करना सुनिश्चित करती है।  
5 सकारात्‍मक परवरिश के टिप्‍स हैं –
1.     शांत रहना, योग का अभ्यास, प्राणायाम और ध्यान करना।
2.     अपने बच्चे को राजी करने के लिए पुरस्कार और उपहार को ‘न’ कहे।
3.     उनकी दैनिक गतिविधियों में किसी न किसी तरह संलग्‍न रहें।
4.     अपने बच्चे के सामने निर्णय लेने के अवसरों को उत्पन्न करें।
भावुक आवेगों को कुशलतापूर्वक संभालें। उन्हें नकारने के बजाय साफ तौर पर उन्हें  बताएं कि उन्‍हें क्‍या करने की आवश्यकता है।
तनाव प्रबंधन कौशल
जीवन कौशल
व्यवहार/संबंधों की निपुणता
अध्ययन और शैक्षणिक प्रवीणता
अधिकारपूर्ण परवरिश का तरीका सर्वोत्तम है। इसमें अपेक्षा और सहयोग का समन्वय है,जो बच्चों में स्वतंत्रता, आत्म–नियंत्रण और आत्म-व्यवस्थापन जैसे गुणों को विकसित करता है। बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार, अधिकारपूर्ण परवरिश बदलाव की संभावना का समावेश करता है।
स्‍वस्‍थ परवरिश में बच्‍चे जन्‍म से ही अच्छे होते हैं और वह सदैव सही काम करना चाहते हैं। इसमें आपसी विश्वास एवं अनुशासन के सकारात्मक तरीकों का समन्वय होता है। एक स्वस्थ लालन-पालन का रवैया पिछले दुर्व्यवहार की अपेक्षा भविष्य के उचित व्यवहार पर केंद्रित रहता है।

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