भारत, पूरे विश्वभर में अपनी अनोखी संस्कृति व परम्पराओं के लिए जाना जाता है। यह देश त्योहारों का देश है और यह सभी त्योहार हमारे संस्कारों तथा वैदिक परंपराओं को आज की पीढ़ी तक पहुँचाने का एक माध्यम हैं। इन में से एक त्योहार अहोई अष्टमी का है, जिसमें सभी माताएँ अपनी संतान की दीर्घ आयु और मंगलमय जीवन के लिए उपवास रखती हैं।

अहोई अष्टमी को मनाने का समय

अहोई अष्टमी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आइए जानते हैं अगले 7 वर्षों में यह त्योहार कब कब मनाया जाएगा।

वर्षदिनतिथि*
2024गुरूवार24 अक्टूबर
2025सोमवार13 अक्टूबर
2026रविवार1 नवंबर
2027शुक्रवार22 अक्टूबर
2028बुधवार11 अक्टूबर
2029मंगलवार30 अक्टूबर
2030शनिवार19 अक्टूबर
*तिथियां बदल सकती हैं।

अहोई अष्टमी की कथा

अहोई अष्टमी पर्व से सम्बंधित विभिन्न पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। पूजा करते समय स्त्रियाँ एक दूसरे को कथाएँ सुनाती हैं। अहोई अष्टमी से सम्बंधित प्रचलित दो कथाएँ निम्नलिखित हैं:

कथा 1

प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहाँ से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी खोदते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाँधूँगी।

स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक करके विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है। वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और इसलिए वह साँप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है।

स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएँ होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया।

कथा 2

दंतकथा के अनुसार एक बार एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गाँव में रहती थी। एक दिन कार्तिक महीने में वह औरत मिट्टी खोदने के लिए जंगल में गई। वहाँ पर उसने गलती से एक पशु के शावक की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी।

उस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस घटना से दुखी हो कर उस औरत ने अपनी कहानी गाँव की हर एक औरत को सुनाई। एक बड़ी औरत ने उस औरत को यह सुझाव दिया की वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करे। पशु के शावक की सोते हुए हत्या के पश्चाताप के लिए उस औरत ने शावक का चित्र बनाया और माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रख कर उनकी पूजा करने लगी। उस औरत ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत रखा और आखिर में उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व जान लेने के बाद आइए अब जानें कि यह व्रत किस प्रकार किया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

  1. उत्तर प्रदेश, हरियाणा व उत्तर भारत के अन्य राज्यों में अहोई अष्टमी का व्रत निम्नलिखित तरीके से मनाया जाता है:
  2. प्रातः काल (सूर्योदय: से पहले) सुबह जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद कुछ फल इत्यादि खाते हैं।
  3. मंदिर जाना अथवा घर के मंदिर में पूजा की जाती है।
  4. पूरे दिन निर्जल व्रत रखना भी प्रचलित है।
  5. शाम के समय, बच्चों के साथ बैठकर अहोई अष्टमी माता की पूजा करते हैं।
  6. दीवार पर अहोई अष्टमी माता की तस्वीर बनाते हैं अथवा उनका एक कैलेंडर लगाते हैं।
  7. शाम को तारे निकलते ही उनको जल व खाना अर्पण करके ही व्रत खोलते हैं।

अहोई अष्टमी पूजा सामग्री

पूजा सामग्री – चावल, रोली, मोली अथवा धूप की नाल

अहोई अष्टमी की आरती

जय अहोई माता जय अहोई माता ।

तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।

ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।

तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।

जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।

कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।

खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।

रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।

अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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