intuition process

इंट्यूशन प्रोसेस (प्रज्ञा योग)

सही विचार को सही समय पर पाएं

अपनी अंतर्ज्ञान शक्ति तक पहुंचने का अर्थ है अपने अंतरआत्मा से जुड़ना। आर्ट ऑफ लिविंग के इंट्यूशन प्रोसेस में शामिल होकर अपनी इंद्रियों से परे समझ शक्ति प्राप्त करें।

प्रतिदिन 2.5 घंटे (2 दिन के प्रारूप में)

*आपका योगदान, आपके और आर्ट ऑफ लिविंग की परियोजनाओं के लिए लाभकारी है।

आपकी संतान सीखेगी

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निश्चिन्त एवं ओजस्वी मन

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कुछ नया और सृजनात्मक करने की सोच

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अंत: प्रज्ञा से बेहतर निर्णय

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विकसित प्रज्ञा से जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन

प्रज्ञा, अर्थात्‌ सही समय पर सही विचार।

- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

आर्ट ऑफ लिविंग का इंट्यूशन प्रोसेस क्या है?

हमारी चेतना में प्रचुरता में अनदेखी अन्तर्निहित शक्ति है। प्रज्ञा योग, बच्चों के मन की असीम संभावना को सही ढंग से थपथपाती है। यह मन को, पांचों इन्द्रियों के परे ले जाकर प्रज्ञा या छठी इन्द्रिय तक पहुंचाने में मदद करती है। एक मजबूत और सुविकसित प्रज्ञा आपको अच्छे निर्णय लेने में, विचारों का बेहतर आदान-प्रदान और आत्मविश्वास का निर्माण करने में मदद करती है। अविष्कार और नवीन खोज में प्रज्ञा मदद करती है। यह बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन एवं अच्छे आपसी वैयक्तिक संबंधों को प्रदर्शित करता है।

चूंकि यह कुछ ऐसा है जो हममें स्वाभाविक है, लेकिन हमारे दैनिक जीवन में सुस्पष्ट नहीं है। ऐसे में बड़ा ही रोचक और प्रासंगिक प्रश्न उठता है कि प्रज्ञा को किस तरह विकसित किया जाए।

इंट्यूशन प्रोसेस (प्रज्ञा योग) पर अध्ययन

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सटीकता

औसत परिशुद्धता जिसका किशोर प्रदर्शन करता है, में 22% वृद्धि

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मानसिक स्वास्थ्य

उत्कृष्ट मानसिक स्वास्थ्य में 29% की वृद्धि

उत्कृष्ट मानसिक स्वास्थ्य वाली जनसंख्या में 237% की वृद्धि

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भावनात्मक समस्याएं

  • अध्ययन के द्वारा यह पता चला कि लोगों की भावनात्मक समस्याओं में 69% की कमी आयी

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अतिसक्रियता

  • अध्ययन के द्वारा यह पाया गया कि लोगों की अतिसक्रियता में 67% तक की कमी आयी

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हम उम्र मित्र समूह समस्या

  • अध्ययन के द्वारा यह पता चला कि हम उम्र मित्र समूह की समस्याओं में 50% तक की कमी आयी

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आचार-व्यवहार की समस्या

  • लोगों के व्यावहारिक समस्याओं में 78% तक की कमी आयी

संस्थापक

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक वैश्विक मानवतावादी, आध्यात्मिक गुरु और शांति दूत हैं। तनावमुक्त और हिंसा मुक्त समाज के लिए उन्होंने एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किया है।

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संस्थापक

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक वैश्विक मानवतावादी, आध्यात्मिक गुरु और शांति दूत हैं। तनावमुक्त और हिंसा मुक्त समाज के लिए उन्होंने एक अभूतपूर्व विश्वव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किया है।

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मैं अपने बच्चे का नामांकन कराना चाहता हूं लेकिन...

क्या वास्तव में बच्चों में अन्तः प्रज्ञा को विकसित किया जा सकता है ? क्या यह एक ऐसा जन्मजात गुण है, जो कि किसी में हो भी सकता है और नहीं भी?

हर व्यक्ति प्रज्ञा की अनुभूति कर सकता है । बच्चें इसे सरलता से प्राप्त कर सकते है क्योंकि उनके मन ताजा और खुले हुए होते हैं।  और यह संभव है कि इस अन्तर्तम गुण को विकसित करके और सुदृढ़ बनाया जा सकता है। 

प्रज्ञा योग अथाह और अज्ञेय सुप्त मानसिक शक्ति को, जो कि प्रत्येक बच्चे में स्वभाववश होता है, उत्पन्न कर सकता है । इन विशेष मानसिक योग्यताओं को विकसित करने और खिलने के लिए आपके मन की उचित देखभाल और पुष्टिवर्धन की आवश्यकता होती है। यही प्रज्ञा प्रक्रिया का मूल बिन्दू है -  मेधा कौशल तक पहुंच कर उसका उपयोग किस तरह क्रमबद्ध तरीके से किया जाए।

यह कितने दिनों का होता है और किस आयु वर्ग के लिए है?

यह 2 दिन का कार्यक्रम, 5 से 18 वर्ष के बीच के आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों के लिये  शुरू किया गया है । कार्यक्रम को अनुरूप बनाने के लिए बच्चों की समझ अनुसार दो समूहों में बाँटा गया है । 

  • कनिष्ठ समूह  (5 वर्ष से  8 वर्ष तक)
  • वरिष्ठ समूह  (9 वर्ष से  18 वर्ष तक)

यह किस पर आधारित है? इसे कैसे सिखाया जाएगा?

इनटूशन प्रोसेस एक प्राचीन  तकनीक पर आधारित है और इसमें ध्यान के साथ विभिन्न अभ्यासों को शामिल किया गया है। इनटूशन प्रोसेस मन की गूढ़ शक्तियों को थपथपाने में मदद करता है । इस कार्यक्रम में बच्चों का परिचय होता है:

  • मन को विश्राम देने और केंद्रित रहने  के लिए  तकनीकें।
  • निर्देशित ध्यान एवं विश्राम की प्रक्रियाएं।
  • कई गतिविधियां जैसे आँखों पर पट्टी बांध कर रंगों की पहचान, पढ़ना और ऐसे खेल जो प्रतिभागियों को अपने अन्तः प्रज्ञा  तक पहुँच कर उसके उपयोग में मदद करता है।
  • गृह अभ्यास के अनुक्रम।

इनटूशन प्रोसेस की योग्यता को सशक्त करने के लिये रोज गृह अभ्यास करना और कार्यक्रम में जो सिखाया गया, उसे ग्रहण करना आवश्यक है । यह सारी गतिविधियां, ऐसे उपकरण हैं, जो सिखाते है कि बच्चों में कैसे प्रज्ञा ज्ञान की क्षमता को विकसित करना है।

इंट्यूशन प्रोसेस केवल बच्चों के लिये ही क्यों?

हम सभी, इन्द्रियों से परे, स्वभाव से  प्रज्ञा योग्यता के साथ जन्मे  हैं । यह योग्यता विशेषता बच्चों में स्पष्ट दिखती है ।  ऐसा इसलिए क्योंकि उनके मन अभी निर्मल है, कम आसक्त  और प्रकृति से ज्यादा सामंजस्य में होते हैं।

इंट्यूशन प्रोसेस से मैं किन लाभों की अपेक्षा कर सकता/सकती हूं?

यह कार्यक्रम बच्चों को निम्नलिखित योग्यताएं प्रदान करता है:

  • बेहतर प्रज्ञा
  • संवेदी क्षमता को बढ़ाना
  • बेहतर सजगता और दूरदर्शिता
  • आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी
  • अज्ञात भय से मुक्ति
  • बुद्धि और सृजनशीलता में वृद्धि

इसके अलावा, इस कार्यक्रम से बच्चों ने सीखा

  • चरम उत्सुकता और अच्छी तर्क शक्ति के सामर्थ्य से विषय पर उनकी मजबूत पकड़
  • स्कूल के कार्यों में रुचि प्रकट करना
  • समस्या से हल खोजने की मानसिकता का विकास
  • नयी भाषाओं को धाराप्रवाह सीखना
  • सहज विचारों का उद्भव  और साथ ही दूसरे लोगों से उपजी अवधारणाओं का सम्मान
  • दूसरों की सेवा के लिये प्रेरणा के भाव का विकास
  • विविधताओं और मतभेदों के प्रति विनीत और संवेदनशील
  • औरों के साथ, स्वस्थ और खुले आचरण के साथ दूसरों के साथ तालमेल बनाना।

कई बच्चे, इस कार्यक्रम से सीखे कौशल को अपने शैक्षणिक या अतिरिक्त पाठ्यक्रम में सुधार लाने के लिए उपयोग कर रहे हैं ।  वे अपनी गतिविधियों पर ज्यादा केंद्रित होकर और दिशा की अच्छी समझ के साथ आगे बढ़ रहे हैं। 

बच्चे में बदलाव तात्क्षणिक है या फिर निश्चित है?

कार्यक्रम के लाभ सभी को स्पष्ट हैं। इस कार्यक्रम के पाठ्यक्रम का अनुसरण करने के बाद, बच्चे व उनके अभिभावकों के कई सारे वीडियो देख सकते हैं, जहां पर वे अपने अनुभव साझा कर रहे है।  

प्रत्येक बच्चा अपने आप में अनूठा है और उसके प्रज्ञा के विकास का अपना एक स्तर है । उसकी तरक्की या बदलाव उसके अपने प्रयास और प्रतिदिन के अभ्यास पर निर्भर करती है।   कार्यक्रम में सुझाव दिया जाता है कि वे रोजाना 15 -25  मिनट अपने गृह अभ्यास को समर्पित करें।  नियमित अभ्यास से बच्चे और अभिभावक उनके प्रज्ञा योग्यता में सुधार देख रहे हैं ।  बच्चों की इन महत्वपूर्ण अनुभूतियों का यही आधार है।

बच्चों के विस्मयकारी कार्यों को देखे  !

भारत के प्राचीनतम महाकाव्य - महाभारत में,  प्रज्ञा ज्ञान का सर्वाधिक पुरातन संदर्भ दिया गया है। कुरुक्षेत्र के महासंग्राम के दौरान, सम्राट के सलाहकार एवं सारथी संजय रणक्षेत्र में चल रही घटनाओं को अपनी प्रज्ञा शक्ति द्वारा आंखों देखा हाल बताते हैं।  यथार्थ समय के दायरे में, रण-क्षेत्र की घटनाओं को दृष्टिहीन राजा को 'देखने’ में उनकी दिव्य दृष्टि ने उनकी मदद की ।

क्या आप अभिभावकों के कुछ अनुभव साझा कर सकते है?

  1. अभिभावक, नमन मल्होत्रा (८ वर्ष): पिछले दो वर्ष से नमन मेधा प्रक्रियाओं का अभ्यास कर रहा था । मैंने उसमें उल्लेखनीय रूप से सकारात्मक बदलाव देखे । उसमें अब ज्यादा आत्मविश्वास और वह ज्यादा केंद्रित है, उसकी ग्राह्य शक्ति, उसके  विचारों में कुशाग्रता आ गई है । उसमें अब तत्पर सजगता भी सुदृढ़ हो गई है और उसने बैंगलोर में हुए कर्नाटक  राज्य स्तरीय ताइकोवोन्डो चैम्पियनशिप २०१८ में स्वर्ण पदक अर्जित किया।

  2. अभिभावक, वैष्णवी अनिल (१२ वर्ष): वैष्णवी ने  प्रज्ञा योग, २०१५ में किया था । इस कार्यक्रम को करने के बाद वैष्णवी में अद्भुत क्षमता प्रकट होते देख कर हम बड़े विस्मित हो गए। वो  चित्र की पहचान, रंग, नोटों / मुद्राओं की पहचान, पहेलियां सुलझाना, कार्ड पढ़ लेना, फोन पर गेम्स खेलना और सवाल हल करना, ये सब आंखों पर पट्टी बांधकर कर सकती थी ! इसके अतिरिक्त,  हमने उसमें अद्भुत बदलाव देखा । वो एक शर्मीली लड़की थी और उसमें लोगों से बात-चीत का खास गुण नहीं था । इस कार्यक्रम को करने के बाद उसके व्यक्तित्व ने पूरे १८० अंश की पलटी मारी !  वो ज्यादा आत्मविश्वासी, ज्यादा मिलनसार हो गई थी और उसका मंच पर जाने का भय भी जा चुका था!

  3. अभिभावक, प्रीत चन्द्रेश थुम्मर (९ वर्ष) : प्रीत एक अन्तर्मुखी- संकोची और कभी कभार ही लोगों से मिलता-जुलता था या किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेता था । जब वो बात करता था,  तो किसी आंख नहीं मिलाता था। स्कूल में विषयों को समझ नहीं पाता था ।  इस कार्यक्रम को करने के बाद हमें ये एहसास हुआ कि वो शांत और गंभीर इसलिए नहीं है क्योंकि उसमें आत्मविश्वास नहीं है, बल्कि कुछ  समझ-बूझ नहीं पाने  के कारण है  । इस कार्यक्रम ने उसे उसके भय, उसकी आत्म चेतना और संशय पर काबू पाने में मदद की । अब वो लोगों से पूरे आत्मविश्वास के साथ बात कर पाता है । वो अब कक्षा की परिचर्चाओं में भी भाग लेता है,  स्कूल में उसका प्रदर्शन भी बेहतर हुआ है ।  उसे अब रोज का अभ्यास अच्छा लगता है, ध्यान और अन्य प्रक्रियाएं उसे खुश रखती हैं और भीतर से विश्राम देती हैं। 

  4. अभिभावक, नित्या जितेश पाटिल (१० वर्ष) : नित्या ने प्रज्ञा योग दिसम्बर २०१६ में किया । तब से वो अपनी साधना दिन में दो बार रोजाना कर रही है । हमने देखा है कि अब वह ज्यादा केन्द्रित, जिम्मेदार हो गई है और अपने शिक्षकों और मित्रों के साथ मिलनसार हो रही है । वो अब निडरता और सजगता के साथ शिक्षकों द्वारा आलोचना का सामना करती है । वो इतनी आत्मविश्वासी हो गयी है कि ये सब, हमारे साथ घर पर  चर्चा कर लेती है, अपनी गलतियों को खुलकर स्वीकार कर लेती है । साथ ही, हमने पाया कि वो पढ़ाई में ज्यादा  दक्ष हो गयी है, अपने कार्य को पहले जितना समय लगता था,  उससे भी आधे समय में  पूरा कर लेती है । इस कार्यक्रम से उसमें सेवा का गुण भी विकसित हुआ है, अब वो जिसे मदद चाहिए,  उनकी मदद के लिए तत्पर रहती है।

    हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में, जर्मन मनोवैज्ञानिक जर्ड गिजेरैंजर ने काफ़ी सारे अनुभवों पर आधारित वर्णन किया है कि मेधा बुद्धिमत्ता का अचेतन रूप है । जिस अनिश्चित जगत में हम रह रहे हैं, उसके लिए यह एक लाभदायक आंतरिक शक्ति है,  जो कि नितान्त अनिवार्य भी है। 

    अतः ज्यादा चकित न हों, अपने दिमाग को ज्यादा कष्ट न दें कि आखिर अपने बच्चे के लिये क्या खरीदना है ! आर्ट आफ़ लिविंग का प्रज्ञा योग एक अमूल्य उपहार है,  जो आप अपने बच्चे को दे सकते हैं, उसे तैयार कर सकते हैं, अज्ञात और अनिश्चित,  भविष्य के लिए, आन्तरिक दृढ़ विश्वास और मेधा शक्ति की निश्चित्ता के साथ !!